नई दिल्ली - चुनाव आयोग को अलग पहचान देने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का रविवार रात चेन्नई में निधन हो गया। वे 87 साल के थे। शेषन 1990 से 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे थे। शेषन के चुनाव सुधार मिशन से ही आम चुनावों में प्रचार के गलत तरीके रुके थे। उम्मीदवारों के खर्च पर लगाम हो या फिर सरकारी हेलिकॉप्टर से चुनाव प्रचार के लिए जाने पर रोक शेषन ने ही लगाई। दीवारों पर नारे, पोस्टर चिपकाना, लाउडस्पीकरों से शोर, प्रचार के नाम पर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाले भाषण देना, उन्होंने सब पर सख्ती की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के निधन पर शोक जताया है। पीएम मोदी ने अपने टि्वटर हैंडल पर टीएन शेषन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा कि उनके निधन से दुख पहुंचा है। उन्होंने चुनाव सुधारों में जो अहम भूमिका निभाई उसने हमारे लोकतंत्र को और मजबूत बनाया।
शेषन के आयुक्त बनने की कहानी बेहद रोचक है। मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने से पहले 1989 में वह देश के 18वें कैबिनेट सचिव के पद पर थे। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह से उनकी नहीं बनीं। वीपी सिंह ने उन्हें कैबिनेट सचिव के पद से हटाकर योजना आयोग में भेज दिया था। वीपी सिंह के बाद प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर ने उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था। दिसंबर 1990 की रात करीब 1 बजे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी शेषन के घर पहुंचे। उन्होंने पूछा था, क्या आप अगला मुख्य चुनाव आयुक्त बनना पसंद करेंगे? करीब 2 घंटे तक स्वामी उन्हें मनाते रहे। पर राजीव गांधी से मिलने के बाद ही शेषन ने सहमति दी। यह बड़ी विडंबना रही कि शेषन पर कांग्रेसी होने का ठप्पा लगा था लेकिन सच्चाई यह थी कि पर कांग्रेस खुद उनके फैसलों से परेशान थी। शायद इसकी वजह रही उनकी दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी से निकटता।
शेषन अक्सर मजाक में कहते थे कि मैं नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खाता हूं। कैबिनेट सचिव रहे शेषन ने एक बार राजीव गांधी के मुंह से यह कहते हुए बिस्किट खींच लिया कि प्रधानमंत्री को वो चीज नहीं खानी चाहिए, जिसका पहले परीक्षण न किया गया हो। चुनाव संबंधी नियमों को सख्ती से लागू करवाने के लिए मशहूर शेषन ने अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव किसी को नहीं बख्शा। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर भी शेषन सख्त रहे। लालू, शेषन को जमकर लानतें भेजते। कहते कि शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे।
वो पहले चुनाव आयुक्त थे जिन्होंने बिहार में पहली बार चार चरणों में चुनाव करवाया था। इस दौरान मात्र गड़बड़ी की आशंका में ही चारों बार चुनाव की तारीखें तक बदल दी थी। बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम रहे बिहार में उन्होंने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया था। मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकारों को भंग करने के बाद पूर्व मंत्री अर्जुन सिंह ने कहा था कि इन राज्यों में चुनाव सालभर बाद होंगे। शेषन ने तुरंत प्रेस विज्ञप्ति जारी की, याद दिलाया कि चुनाव की तारीख मंत्रिगण नहीं, चुनाव आयोग तय करता है।
शेषन के कार्यकाल में ही चुनावों में मतदाता पहचान पत्र का इस्तेमाल शुरू हुआ। शुरू में नेताओं ने इसका विरोध किया था और इसे बहुत खर्चीला बताया था। लेकिन शेषन नेताओं के आगे नहीं झुके और कई राज्यों में तो मतदाता पहचान पत्र तैयार नहीं होने की वजह से उन्होंने चुनाव तक स्थगित करवा दिए थे। शेषन जब नए-नए मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे तब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आयोग में कोई काम तो होता नहीं तो वो करते क्या हैं? तब उन्होंने कहा था कि वह अपने दफ्तर में बैठकर क्रॉसवर्ल्ड पजल्स खेलते हैं। बता दें कि शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से पहले चुनाव आयोग की छवि बहुत अच्छी नहीं थी। शेषन ने आदर्श चुनाव संहिता का सख्ती से पालन कराया। उनके पहले आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन करना नेताओं की आदत बन गई थी। उनकी सख्ती का आलम यह था कि उत्तर प्रदेश में एक नेता को प्रचार का समय खत्म होने के बाद भाषण बीच में छोड़कर मंच से उतरना पड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान खर्च पर अंकुश लगाने की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी।
चुनाव सुधारक और सख्त प्रशासक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन अब हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन चुनाव व्यवस्था में जब-जब सुधार की बातें होंगी वो हमेशा याद किए जाएंगे। वास्तव में वो शेषन ही थे जिन्होंने चुनाव आयोग की तस्वीर बदल दी थी। मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से पहले शेषन ने कई मंत्रालयों में काम किया और जहां भी गए उस मंत्री और मंत्रालय की छवि सुधर गई। 1990 में मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद शेषन का डायलॉग 'आइ ईट पॉलिटिशियंस फॉर ब्रेकफास्ट' काफी चर्चा में रहा। छह भाई-बहनों में शेषन सबसे छोटे थे। उनके पिता पेशे से वकील थे। उन्होंने आइएएस की परीक्षा टॉप की थी। वे हिंदी, अंग्रेजी के अलावा तमिल, मलयालम, संस्कृत, कन्नड़, मराठी, गुजराती भाषाओं में दक्ष थे। शेषन ने 1997 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था, हालांकि, उन्हें सफलता नहीं मिली और केआर नारायणन राष्ट्रपति चुने गए थे।
तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन यानी टीएन शेषन का जन्म 15 दिसंबर, 1932 को केरल के पलक्कड़ जिले में हुआ था। 1955 बैच के तमिलनाडु कैडर के आइएएस अधिकारी रहे शेषन 12 दिसंबर, 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक देश के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर रहे। सरकारी सेवाओं के लिए उन्हें 1996 में रेमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के निधन पर शोक जताया है। पीएम मोदी ने अपने टि्वटर हैंडल पर टीएन शेषन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा कि उनके निधन से दुख पहुंचा है। उन्होंने चुनाव सुधारों में जो अहम भूमिका निभाई उसने हमारे लोकतंत्र को और मजबूत बनाया।
Shri TN Seshan was an outstanding civil servant. He served India with utmost diligence and integrity. His efforts towards electoral reforms have made our democracy stronger and more participative. Pained by his demise. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) November 10, 2019
शेषन के आयुक्त बनने की कहानी बेहद रोचक है। मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने से पहले 1989 में वह देश के 18वें कैबिनेट सचिव के पद पर थे। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह से उनकी नहीं बनीं। वीपी सिंह ने उन्हें कैबिनेट सचिव के पद से हटाकर योजना आयोग में भेज दिया था। वीपी सिंह के बाद प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर ने उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था। दिसंबर 1990 की रात करीब 1 बजे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी शेषन के घर पहुंचे। उन्होंने पूछा था, क्या आप अगला मुख्य चुनाव आयुक्त बनना पसंद करेंगे? करीब 2 घंटे तक स्वामी उन्हें मनाते रहे। पर राजीव गांधी से मिलने के बाद ही शेषन ने सहमति दी। यह बड़ी विडंबना रही कि शेषन पर कांग्रेसी होने का ठप्पा लगा था लेकिन सच्चाई यह थी कि पर कांग्रेस खुद उनके फैसलों से परेशान थी। शायद इसकी वजह रही उनकी दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी से निकटता।
शेषन अक्सर मजाक में कहते थे कि मैं नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खाता हूं। कैबिनेट सचिव रहे शेषन ने एक बार राजीव गांधी के मुंह से यह कहते हुए बिस्किट खींच लिया कि प्रधानमंत्री को वो चीज नहीं खानी चाहिए, जिसका पहले परीक्षण न किया गया हो। चुनाव संबंधी नियमों को सख्ती से लागू करवाने के लिए मशहूर शेषन ने अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव किसी को नहीं बख्शा। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर भी शेषन सख्त रहे। लालू, शेषन को जमकर लानतें भेजते। कहते कि शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे।
वो पहले चुनाव आयुक्त थे जिन्होंने बिहार में पहली बार चार चरणों में चुनाव करवाया था। इस दौरान मात्र गड़बड़ी की आशंका में ही चारों बार चुनाव की तारीखें तक बदल दी थी। बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम रहे बिहार में उन्होंने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया था। मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकारों को भंग करने के बाद पूर्व मंत्री अर्जुन सिंह ने कहा था कि इन राज्यों में चुनाव सालभर बाद होंगे। शेषन ने तुरंत प्रेस विज्ञप्ति जारी की, याद दिलाया कि चुनाव की तारीख मंत्रिगण नहीं, चुनाव आयोग तय करता है।
शेषन के कार्यकाल में ही चुनावों में मतदाता पहचान पत्र का इस्तेमाल शुरू हुआ। शुरू में नेताओं ने इसका विरोध किया था और इसे बहुत खर्चीला बताया था। लेकिन शेषन नेताओं के आगे नहीं झुके और कई राज्यों में तो मतदाता पहचान पत्र तैयार नहीं होने की वजह से उन्होंने चुनाव तक स्थगित करवा दिए थे। शेषन जब नए-नए मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे तब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आयोग में कोई काम तो होता नहीं तो वो करते क्या हैं? तब उन्होंने कहा था कि वह अपने दफ्तर में बैठकर क्रॉसवर्ल्ड पजल्स खेलते हैं। बता दें कि शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से पहले चुनाव आयोग की छवि बहुत अच्छी नहीं थी। शेषन ने आदर्श चुनाव संहिता का सख्ती से पालन कराया। उनके पहले आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन करना नेताओं की आदत बन गई थी। उनकी सख्ती का आलम यह था कि उत्तर प्रदेश में एक नेता को प्रचार का समय खत्म होने के बाद भाषण बीच में छोड़कर मंच से उतरना पड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान खर्च पर अंकुश लगाने की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी।
चुनाव सुधारक और सख्त प्रशासक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन अब हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन चुनाव व्यवस्था में जब-जब सुधार की बातें होंगी वो हमेशा याद किए जाएंगे। वास्तव में वो शेषन ही थे जिन्होंने चुनाव आयोग की तस्वीर बदल दी थी। मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से पहले शेषन ने कई मंत्रालयों में काम किया और जहां भी गए उस मंत्री और मंत्रालय की छवि सुधर गई। 1990 में मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद शेषन का डायलॉग 'आइ ईट पॉलिटिशियंस फॉर ब्रेकफास्ट' काफी चर्चा में रहा। छह भाई-बहनों में शेषन सबसे छोटे थे। उनके पिता पेशे से वकील थे। उन्होंने आइएएस की परीक्षा टॉप की थी। वे हिंदी, अंग्रेजी के अलावा तमिल, मलयालम, संस्कृत, कन्नड़, मराठी, गुजराती भाषाओं में दक्ष थे। शेषन ने 1997 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था, हालांकि, उन्हें सफलता नहीं मिली और केआर नारायणन राष्ट्रपति चुने गए थे।
तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन यानी टीएन शेषन का जन्म 15 दिसंबर, 1932 को केरल के पलक्कड़ जिले में हुआ था। 1955 बैच के तमिलनाडु कैडर के आइएएस अधिकारी रहे शेषन 12 दिसंबर, 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक देश के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर रहे। सरकारी सेवाओं के लिए उन्हें 1996 में रेमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया था।